This evergreen song continues to be celebrated for its unique blend of satire, melody, and heartfelt advice, making it a timeless favorite in the annals of Bollywood music. Manna Dey's impeccable rendition and the song's enduring appeal ensure its place as a cherished classic in Indian musical heritage.
Composer | Shankar Jaikishan |
Lyricist | Neeraj Shridhar |
Singer | Manna De |
Album | Mera Naam Joker |
Record Label | Saregama India Ltd. |
Song Release Year |
ए भाई ज़रा देखके चलो
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बाएं भी
ऊपर ही नहीं
नीचे भी
ए भाई
ए भाई ज़रा देखके चलो
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बाएं भी
ऊपर ही नहीं
नीचे भी
ए भाई
तू जहां आया है
वो तेरा घर नहीं गली नहीं गाँव नहीं
कुचा नहीं बस्ती नहीं रास्ता नहीं
दुनिया है
और प्यारे,
दुनिया ये सर्कस है
और सर्कस में
बड़े को भी छोटे को भी खरे को भी
खोटे को भी दुबले को भी मोठे को भी
निचे से ऊपर को ऊपर से नीचे को
आना-जाना पड़ता है
और रिंग मास्टर के
कोड़े पर कोड़ा जो भूख है
कोड़ा जो पैसा है
कोड़ा जो किस्मत है
तरह-तरह नाच के दिखाना यहाँ पड़ता है
बार बार रोना और गाना यहाँ पड़ता है
हीरो से
हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है
ए भाई
ए भाई ज़रा देखके चलो
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बाएं भी
ऊपर ही नहीं
नीचे भी
ए भाई
गिराने से डरता है क्यों
मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब न खायेगा
पास किसी गम को न जब तक बुलाएगा
ज़िन्दगी है चीज़ क्या नहीं जान पायेगा
रोता हुआ आया है
रोता चला जाएगा
ए भाई
ए भाई ज़रा देखके चलो
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बाएं भी
ऊपर ही नहीं
नीचे भी
ए भाई
ए भाई ज़रा देखके चलो
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बाएं भी
ऊपर ही नहीं
नीचे भी
ए भाई
क्या है करिश्मा
कैसा खिलवाड़ है
जानवर आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है
खाता है कोड़ा भी
रहता है भूखा भी
फिर भी वो मालिक पे करता नहीं वार है
और इंसान ये
माल जिसका खाता है
प्यार जिस से पाता है
गीत जिस के गाता है
उसी के ही सीने में भोकता कटार है
कहिए श्रीमान आपका क्या बिचार है ??
माल जिसका खाता है
प्यार जिस से पाता है
गीत जिस के गाता है
उसी के ही सीने में भोकता कटार है
ए भाई
ए भाई ज़रा देखके चलो
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बाएं भी
ऊपर ही नहीं
नीचे भी
ए भाई
सरकस हा हा हा
हाँ बाबू
ये सर्कस और ये सर्कस है शो तीन घंटे का
पहला घंटा बचपन है
दूसरा जवानी है
तीसरा बुढ़ापा है
और उसके बाद
माँ नहीं बाप नहीं
बेटा नहीं बेटी नहीं
तू नहीं मैं नहीं
ये नहीं वो नहीं
कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं
रहता है रहता है जो कुछ वो
ख़ाली-ख़ाली काली कुर्सियाँ हैं
ख़ाली-ख़ाली ताम्बू है
ख़ाली-ख़ाली घेरा है
बिना
चिड़िया का
बसेरा है
न तेरा है
न मेरा है..